बेटा हो या बेटी! पिता की प्रॉपर्टी में कौन कितना हकदार? जानिए नया कानून क्या कहता है Property Rights

By Shruti Singh

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Property Rights

घर की संपत्ति को लेकर परिवारों में झगड़े आजकल आम हो गए हैं। भाई-बहन, चाचा-भतीजा, मां-बेटे तक के बीच अक्सर संपत्ति को लेकर मनमुटाव हो जाता है। इन झगड़ों के पीछे सबसे बड़ी वजह होती है—कानूनी जानकारी की कमी। खासकर बेटियों को उनके हक से वंचित रखा जाता है, क्योंकि समाज में पुरानी सोच आज भी बनी हुई है। इस लेख में हम सरल भाषा में समझेंगे कि भारत में संपत्ति के नियम क्या हैं और बेटियों का क्या हक होता है।

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भारत में संपत्ति के दो प्रकार: पैतृक और स्वयं अर्जित

भारतीय कानून के अनुसार, संपत्ति को दो प्रकारों में बांटा गया है:

  • पैतृक संपत्ति: यह वह संपत्ति होती है जो दादा-परदादा से पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही होती है। इसे जन्म से ही परिवार के सदस्य बराबर हिस्सेदारी के हकदार होते हैं।

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  • स्वयं अर्जित संपत्ति: यह वह संपत्ति होती है जो किसी व्यक्ति ने खुद मेहनत, नौकरी, व्यापार, उपहार या वसीयत से अर्जित की हो।

स्वयं अर्जित संपत्ति पर पिता का अधिकार

अगर कोई पिता ने खुद की कमाई से कोई संपत्ति खरीदी है, तो उस पर उनका पूरा अधिकार होता है। वे इसे किसी भी तरीके से बाँट सकते हैं—चाहे बेटा हो, बेटी हो या कोई और। यदि पिता ने वसीयत बनाई है और उसमें किसी एक बच्चे को संपत्ति देने का फैसला किया है, तो वह वसीयत कानूनी तौर पर सही होने पर मान्य होगी।

बिना वसीयत के संपत्ति का बंटवारा

अगर पिता की मृत्यु वसीयत बनाए बिना हो जाती है, तो उनकी स्वयं अर्जित संपत्ति का बंटवारा हिंदू उत्तराधिकार कानून के अनुसार होगा। इसमें बेटे और बेटी दोनों को बराबर हक मिलेगा। इसलिए समय रहते वसीयत बनाना बहुत जरूरी है, जिससे भविष्य में विवाद से बचा जा सके।

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पैतृक संपत्ति में जन्म से ही अधिकार

पैतृक संपत्ति पर बेटा और बेटी दोनों का जन्म से बराबर अधिकार होता है। साल 2005 में हुए हिंदू उत्तराधिकार कानून के संशोधन ने बेटियों को भी पैतृक संपत्ति में बेटे के समान हिस्सा देने का अधिकार दिया। इसका मतलब है कि बेटियां शादी के बाद ही नहीं, बल्कि बचपन से ही अपनी पैतृक संपत्ति में हिस्सेदार होती हैं।

धर्म के अनुसार संपत्ति के नियम

भारत में अलग-अलग धर्मों के लिए संपत्ति के नियम भी अलग होते हैं:

  • हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन: इन धर्मों के लोग हिंदू उत्तराधिकार कानून के अंतर्गत आते हैं, जिसमें बेटे और बेटियों को बराबर अधिकार मिलता है।

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  • मुस्लिम कानून: मुस्लिम कानून के तहत बेटियों को बेटे की तुलना में करीब आधा हिस्सा मिलता है। हालांकि कोर्ट के कई फैसलों ने बेटियों को बराबरी का अधिकार देने की बात कही है।

बेटियों को हक क्यों नहीं मिलता?

अक्सर बेटियों को उनका कानूनी हक नहीं मिल पाता क्योंकि:

इस वजह से बेटियां चुप रहती हैं और अपना हिस्सा मांगने से डरती हैं।

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झगड़े रोकने का उपाय: समझदारी और पारदर्शिता

अगर परिवार में शुरुआत से ही सभी को बराबर का अधिकार दिया जाए, समय पर वसीयत बनाई जाए और पारदर्शिता रखी जाए, तो बहुत से झगड़े टाले जा सकते हैं। संपत्ति विवाद ज्यादा तब होते हैं जब जानकारी कम हो या परिवार में बातचीत न हो।

बेटा-बेटी दोनों बराबर हैं

आज का कानून साफ कहता है कि बेटा हो या बेटी, दोनों को संपत्ति में बराबर का अधिकार है। अब समय आ गया है कि हम समाज की पुरानी सोच को बदलें और बेटियों को उनका हक दिलाएं। घर-परिवार में भाई-बहन का साथ और समझदारी से संपत्ति विवाद को रोका जा सकता है।

निष्कर्ष

संपत्ति को लेकर विवादों की सबसे बड़ी वजह है जानकारी का अभाव और पुराने सोच का प्रभाव। बेटी और बेटे दोनों को बराबर अधिकार देना न केवल कानूनी है, बल्कि सामाजिक न्याय भी है। इसलिए परिवारों को चाहिए कि वे सही समय पर वसीयत बनाएं, पारदर्शिता रखें और बेटियों को उनका हक दिलाएं ताकि घर में शांति और समरसता बनी रहे।

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Disclaimer: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है। संपत्ति से जुड़े मामलों में स्थिति के अनुसार कानून अलग हो सकता है। किसी भी कानूनी कार्रवाई से पहले योग्य वकील या सलाहकार से परामर्श अवश्य लें।

Shruti Singh

Shruti Singh is a skilled writer and editor at a leading news platform, known for her sharp analysis and crisp reporting on government schemes, current affairs, technology, and the automobile sector. Her clear storytelling and impactful insights have earned her a loyal readership and a respected place in modern journalism.

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