सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: अब औलाद ऐसे नहीं हड़प पाएगी माता-पिता की प्रॉपर्टी! Supreme Court Decision

By Shruti Singh

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Supreme Court Decision

अगर आपके परिवार में भी संपत्ति को लेकर कोई विवाद है या भविष्य में इससे बचना चाहते हैं, तो भारत के सर्वोच्च न्यायालय यानी सुप्रीम कोर्ट का यह ताजा फैसला आपके लिए बेहद जरूरी है। यह निर्णय न केवल कानूनी रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारियों की भी याद दिलाता है।

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संतान का हक नहीं, अगर माता-पिता की देखभाल नहीं की

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि संतान का केवल इस आधार पर संपत्ति पर अधिकार नहीं बनता कि वह बेटा या बेटी है। यदि वह अपने बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल नहीं करता या उन्हें अकेला छोड़ देता है, तो वह संपत्ति के अधिकार से वंचित हो सकता है। यह फैसला उन लोगों के लिए चेतावनी है जो केवल संपत्ति के लालच में माता-पिता से जुड़ते हैं।

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संपत्ति ट्रांसफर के बाद भी वापस ले सकते हैं माता-पिता

कई बार माता-पिता भावनाओं में आकर या भरोसे के कारण अपनी जमीन-जायदाद बच्चों के नाम कर देते हैं। लेकिन जब वही बच्चे उनकी उपेक्षा करने लगते हैं, तो अब वे अपनी दी हुई संपत्ति को वापस ले सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि यदि देखभाल नहीं की जाती, तो गिफ्ट डीड भी रद्द की जा सकती है।

‘वरिष्ठ नागरिक अधिनियम’ बना माता-पिता का हथियार

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यह फैसला “वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007” के अंतर्गत दिया गया है। इस कानून के अनुसार माता-पिता अपनी देखभाल न करने वाले बच्चों से वह संपत्ति वापस मांग सकते हैं जो उन्होंने उपहार के रूप में दी थी। इसके लिए वे कानूनी प्रक्रिया अपना सकते हैं और न्यायालय से गुहार लगा सकते हैं।

दुर्व्यवहार करने वालों को नहीं मिलेगा अधिकार

अगर कोई बच्चा अपने माता-पिता के साथ दुर्व्यवहार करता है, उन्हें मानसिक या शारीरिक रूप से प्रताड़ित करता है, या उनका साथ छोड़ देता है, तो वह संपत्ति पाने का हकदार नहीं होगा। अब केवल रिश्ता होने से अधिकार नहीं मिलेगा, बल्कि जिम्मेदारी निभाना जरूरी होगा।

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पारिवारिक रिश्तों में आएगा संतुलन

यह फैसला केवल कानून की बात नहीं कर रहा, बल्कि भारतीय परिवार व्यवस्था को संतुलित रखने की दिशा में एक बड़ा कदम है। अब बच्चों को यह समझना होगा कि माता-पिता की देखभाल केवल एक कर्तव्य नहीं, बल्कि उनका नैतिक और सामाजिक फर्ज भी है।

समाज को मिलेगा संदेश

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इस फैसले का असर समाज पर भी पड़ेगा। बहुत से माता-पिता बुजुर्गावस्था में अकेलेपन और बच्चों की उपेक्षा का शिकार हो जाते हैं। अब उन्हें अधिकार मिलेगा कि वे अपनी संपत्ति को लेकर खुद निर्णय लें और जरूरत पड़ने पर वापस भी ले सकें। वहीं, बच्चों के लिए यह एक चेतावनी है कि माता-पिता केवल संपत्ति का साधन नहीं हैं, बल्कि उनका सम्मान और सेवा जरूरी है।

निष्कर्ष: अधिकार से पहले कर्तव्य निभाएं

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न सिर्फ एक कानूनी निर्णय है, बल्कि एक सामाजिक संदेश भी है। यह हमें याद दिलाता है कि अधिकार तभी मिलते हैं जब हम अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हैं। अब समय आ गया है कि हम अपने बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल को प्राथमिकता दें और उन्हें वह सम्मान दें जिसके वे हकदार हैं।

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डिस्क्लेमर:
यह लेख सुप्रीम कोर्ट के फैसले और सार्वजनिक रिपोर्ट्स पर आधारित है। किसी भी कानूनी निर्णय से पहले अपने वकील से सलाह जरूर लें। कानून समय-समय पर बदल सकते हैं, इसलिए जानकारी को आधिकारिक स्रोतों से जांच लेना जरूरी है।

Shruti Singh

Shruti Singh is a skilled writer and editor at a leading news platform, known for her sharp analysis and crisp reporting on government schemes, current affairs, technology, and the automobile sector. Her clear storytelling and impactful insights have earned her a loyal readership and a respected place in modern journalism.

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